अपनी किसी भी खबर को समाचार की भाषा में कैसे लिखे और किन बातो का ध्यान रखें। - Indian Public News


लीड लिखना:

लीड की हिंदी मत बनाइए, इसे लीड कहकर ही समझिए क्योंकि इसी शब्द का हर जगह इस्तेमाल होता है। लीड लिखने का मतलब है स्टोरी को शुरू करना…आप कैसे शुरू करें!! कई कापी एडीटर्स का ये मानना है कि अगर आपकी स्टोरी शूरू में ही धड़ाम से दर्शकों के दिल दिमाग पर असर नहीं डालेगी तो दर्शक या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा या तो आपकी खबर में दिलचस्पी नहीं लेगा या देखेगा ही नहीं। लीड दर्शको को ये आइडिया देती है कि खबर कितनी बड़ी या दिलचस्प है। अब लीड एक लाइन की थी हो सकती है और कई लाइनो की भी हो सकती है।

लीड लिखने में आप एक्सपेरीमेंट करके देखते रहिए और एक बात और-सहयोगियों से राय मश्वरा कर लेना कोई गलत बात नहीं है-क्या पता कुछ नया क्लिक कर जाए।

ये उदाहरण पढक़र लीड के मामले को और समझिए-

  1. डॉयलाग का इस्तेमाल

ये हो सकता है कि आपकी स्टोरी जिसके बारे में है वो फैरेक्टर आपकी स्टोरी में अपनी बात अपने ही शब्दों में कहे, जैसे कि कुछ इस तरह से-

अपनी मां के साथ नाश्ता करते वक्त अरुण ने पूछा कि पापा वो कुल्हाड़ी लेकर कहां जा रहे हैं!!

(आप यहां बात या लीड को कहने के स्टाइल समझ रहे है)

  1. किसी कैरेक्टर के जरिए स्टोरी कहना

ये भी एक तरीका है। कई कापी एडीटर्स पहले स्टोरी में किसी कैरेक्टर के बारे में बताते हैं और फिर वो कैरेक्टर स्टोरी को आगे ले जाता है। मसलन-

”मैं उत्तर प्रदेश के नोएडा में 446, सेक्टर 29 में रहता हूं और मैं अपनी पूरी जिंदगी यही गुजारूंगा। मेरे माता-पिता अब उत्तर प्रदेश की राजधानी जखनऊ में रहने जा रहे हैं।”

  1. स्टोरी में सवाल खड़े कर दीजिए

इस उदाहरण को पढि़ए-

”मैं बड़े शहर का रहने वाला हूं और बड़े शहर के तौर-तरीकों का आदी हो चुका हूं, ऐसे में देहरादून जैसे शहर में जाकर बसना थोड़ा डराता तो है ही। कच्ची सब्जियों से अगर मुझे पीलियां हो गया तो? या अगर बाइक से गिर गया और हड्डी टूट गई तो?

(देखिए ये सवाल स्टोरी के मर्म को उठा रहे हैं)

  1. बड़े सवालों के जवाबों से शुरूआत

ये भी मुमकिन है कि स्टोरी जो बड़े सवालों के जवाब देती है उनसे शुरू कीजिए। क्यों, कहां, कब और कौन के जवाबों से शुरू कीजिए। उदाहरण देखिए-

”दिल्ली एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाला इंडियन एयरलांइस का एक वोइंग विमान तूफान में फंसकर एक ऐसे पुल से टकरा गया जिस पर काफी भीड़-भाड़ थी। ये हादसा दोपहर बाद हुआ और जहाज टूटकर यमुना नदी में जा गिरा। गैर सरकारी खबरों के मुताबिक अब तक कम से दस लोगों के मरने की आशंका है और चालीस से ज्यादा लोग लापता है।”

(इसमें देखिए- बेहद महत्वपूर्ण जानकारियों में ही शुरूआत कर दी गई)

  1. बेजान चीजों के माध्यम से लिखना

जैसे कि मौसम, अब ये उदाहरण पढि़ए-

”बीकानेर में बसंत का मौसम झमझम करते हुए नहीं आता। बसंत अपने असली रंग तो बंगलौर या श्रीनगर में दिखाता है जहां इस मौसम को मिजाज देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगती है। हमारे राज्य में तो ये मौसम कब आता है पता तक नहीं चलता। लोग भी कोई खास उम्मीदें नहीं रखते। बसंत हमारे राज्य में कुछ खास नहीं है।”

  1. फील पैदा कीजिए

अब जरा ये उदाहरण पढि़ए-

अलका ने पतीली के नीचे आग को थोड़ा और सुलगाया। बर्तन में थोड़ा सा मक्खन डाला और जब मक्खन महकने लगा तो थोड़ा सा पानी और टमाटर का जूस मिलाकर बने रस को चम्मच से देर तक चलाया। जो मिक्सचर बना वो न तो ज्यादा थिक था न ज्यादा पतला-पर था बड़ा यम यम!!!

अलका चाहती थी कि जिनके लिए वो ये चीज बना रही है वो मेहमान शाम को जब इसका मजा ले तो उनके मुहं से वाह निकल जाए-वाह क्या सूप है !!”

(मजा आया आपको सूप का! देखिए कि स्क्रिप्ट में ही सूप की खुशबू है-इसे कहते है फील पैदा करना)

  1. चटपटी बातों का इस्तेमाल

चाट किसे अच्छी नहीं लगती। लीड में भी चटपटापन रखिए। ये देखिए-

”सबसे पहली चीज जो दिखेगी वो है बिल्ली-बिल्ली भी ऐसी कि उसका खानदानी सिलसिला भी उनके जानवशं से पुराने इतिहास से जुड़ा हुआ। इधर दीवार है तो मैडम बिल्ली है, उधर बरगद का पेड़ है तो बिल्ली जी बैठी हे, आगे आइए पीछे जाइए, दरवाजे-खिडक़ी बरामदा कुछ भी खोलिए मैडम बिल्ली जरूर दिखेंगी आपको। छ: उंगलियों वाली बिल्लियां ही बिल्लियां। आप सुबह साढ़े दस बजे उनके गेट पर पहुंच जाइए और बिल्लियों को हटाते बचाते हुए अंदर जाकर एंट्री की बात कर लीजिए… अरे साहब लोग पैसे खर्च करते है इसके लिए”


  1. माहौल को जमाकर लिखिए

अब ये भाषा और शैली का खेल है, शब्दों का जादू है…कोशिश करे कि भाषा का जादू चलाएं, माहौल पैदा कर दीजिए।

जैसे कि-

”अंधेरा चुपके से चलकर आता है और पहाड़ी इलाकों पर जल्दी से छा जाता है। पहाड़ो के पीछे सूरज सुप से सरकर कर छुप जाता है, शाम के साए लंबे होते हैं और रातो की आवाजे रातों के जीवों की आवाजों के साथ सुनाई पडऩे लगती है। तड़पड़ाते खनखनाते चमगादड़ो की फौज की फौज उस मिट्टी भरी सडक़ के ऊपर से गुजरती है जहां जीवविज्ञान लीना दास और उनके पति रमन ने अपनी गाड़ी खड़ी की थी। दास कपल भी रात के कीडें थे। उन्हें भी क्या सूफी थी!! रात को प्रकृति को नजदीक से देखने की इच्छा उन्हे यहां खींच लाईं थी।”

(इस उदाहरण में देखिए- आप साउंड महसूस कर सकेंगे, आपको सब कुछ दिखने सा लगेगा)

  1. मजाक करना भी आना चाहिए

वैसे न्यूज थोड़ी सीरियल चीज है पर मजाक कभी-कभी इसमें भी कर सकते हैं, हां कहां करना है ये जरा ध्यान से सोचिएगा।

अभी तो इसे पढि़ए-

”रमन साहब गाड़ी लेकर निकले हुए थे। अभी-अभी जमकर खूब तला मसालेदार खाना खाया था और वो भी रेस्टोरेंट का…अब ये तो होना ही था। गाडी चलाते-चलाते अचानक बाथरूम की तलब लगी। टेढ़ी-मेढ़ी जैसी मिली कार पार्किंग की और दौडें अंदर…पर ये क्या… दोनों बाथरूम पर ताला और एक कागज चिपका जिस पर लिखा- असुविधा के लिए खेद है। अब रमन क्या करे खेद सुने या अपनी सुने…बेचारे ने बड़ी वेबसी से पेट्रोलपंप वाले की तरफ देखा।”

लीड को लिखने के बाद उसे परखिए

जोर से पढ़कर देखिए: आपने जो लीड लिखी है उसे खुद ही जोर से पढ़कर सुनने की कोशिश कीजिए… कैसा लगता है बोलने में या सुनने में…एक सांस में आराम से बोल पाते है आप?…शब्दों का बोलने में कोई अटकाव तो नहीं आता?…ये तो नहीं कि सुनते वक्त कुछ समझ में नहीं आता। ऐसा तो नहीं हो रहा कि इतनी बोरिंग है कि आपको खुद नींद आ जाए…जैसा लगेगा वही आपके दर्शक को भी लगेगा।

रिवीजन कर करके सीखिए: हर अखबार में हर न्यूज चैनल में आपको लीड मिलती है। उन पर ध्यान दीजिए। देखिए कि उन्हें कैसे लिखा गया है। देखिए कि क्या-क्या शब्द है उन लीड्स में, देखिए कि क्या आप कुछ शब्द मिलाकर या हटाकर उसे बेहतर कर सकते हैं- इससे आपका विकास होगा। किसी बड़े अखबार या न्यूज चैनल में लीड है तो वो कोई पत्थर की लकीर नहीं हो गई है-उसे भी बेहतर किया जा सकता है- आप आपतन में करिए और फिर देखिए…आपका आत्मविश्वास खुद बढ़ जाएगा।


तथ्य गलत न हो जाए: कई बार लीड को धमाकेदार और मजेदार बनाने के चक्कर में कापी एडीटर्स तथ्यों में गड़बड़ी कर जाते है- इसका ध्यान रखें।

ऐक्टिव वॉयस पैसिव वॉयस का अंतर: अंग्रेजी में अपने एक्टिव वॉयस और पैसिव वॉयस को पढ़ा होगा- उसका बड़ा रोल है खबर लिखने में। पैसिव वॉयस में ”वो ये योजना बना रहे हैं” या ”वे ये आशा कर रहे हैं” जैसा लिखने के बजाय एक्टिव वॉयस में ”उनकी योजना है” या ”उन्हे आशा है’ जैसे तरीके से लिखिए।

लच्छेदार शब्दावली हटा दीजिए: नेता वकील और अफसर अक्सर बड़ी लच्छेदार भाषा में बात करते हैं। इसे आप नियंत्रित रखिए क्योंकि ज्यादा लच्छेदार वाक्य विन्यास दर्शकों को आपसे दूर ही करते हैं।

बेकार के शब्दों का हटाइए: आप खुद सोचिए-इनमें से सुनने में कौन सी लीड बेहतर लगती है- ”एक अनजाने दुख ने गिरीश को तोडक़र रख दिया” या ये कि ”गार्डेन में बैठकर गिरीश अपने दुख के कारण काफी देर तक रोता रहा”… इस चीज को समझिए।

हेडलाइंस लिखने का स्टाइल

मशहूर राइटर जार्ज ओखेल ने एक बार कहा था कि किसी दूसरे की लिखी चीज में रद्दोबदल करने से ज्यादा मजा इंसान को किसी चीज में नहीं आता है। कापी एडीटर्स तो ये बात मानेंगे नहीं पर सच यही है कि हर इंसान स्क्रिप्ट की क्रिएटिविटी में अपना अंदाजे बयां ढूंढता है।

हेडलाइंस के अंदाजे बयां के लिए आपका होशियार होना या कह ले के चालाक होना जरूरी है पर इस होशियारी या चालाकी का अच्छा इस्तेमाल करके आप अच्छी हेडलाइंस तभी लिख सकते हैं जब आप इसमें होशमंदी और समझदारी का भी खूबसूरत मिश्रण करके रखें।

कौन सी खबर हेडलाइंस के लायक है या किस हेडलाइंस को किन तरीको से लिखा जाए इस पर आपको हमेशा अलग-अलग राय मिलेगी पर अच्छे कापी एडीटर्स अच्छी हेडलाइंस लिखने के लिए कुछ बाते तो ध्यान में रखते ही हैं। (ये बात अलग है कि कई बार नियम फायदे से हट कर भी लिखी जा सकती हैं)

चंद सुझाव:

  1. नुकसान पहुंचाने के इरादे से मत लिखिए
  • ये मेरा अपना सुझाव है। बिल्कुल पर्सनल सा।
  • मेरे कहने का मतलब ये है कि थोड़ा अपनेपन से सोचकर लिखिए। स्टोरी जिनके बारे में है अगर वो आपके अपने होते तो आप कैसे लिखते। किसी का नुकसान करना आपका इरादा नहीं होना चाहिए।
  • मेरा ये मानना है कि ये मानवीय दृष्टिकोण जरूरी हैं। आप इस पर औरों से पूछकर देख लीजिए।
  1. अपनी होशियारी और मजेदारियत” से दर्शको को जोडि़ए
  • ऐसा अटपटांग मत लिखिए कि दर्शको को गुस्सा आए।
  • कुछ ऐसा भी मत लिखिए कि दर्शक आपसे ऊब कर चिढ़ से जाएं।
  • उल्टा सीधा लिखकर अपने ऊपर कोई ठप्पा मत लगने दीजिए-आपके लिखने के तरीके से आपके ऊपर कोई ठप्पा तो नहीं लग रहा है, ये बात पता करते रहिए। दोस्त तो सच बताएंगे नहीं, ऐसो से पूछिए जो सच बता सकें।
  1. क्लीशे से बचिए
  • क्लीशे का बिल्कुल सही हिंदी शब्द शायद नहीं ही है। आप इसे जबरदस्ती की नाटकीयता कह सकते है-इससे बचिए।
  • पर ये भी है कि कई बार नाटकीयता की जरूरत भी आ जाती है-हर नियम का अपवाद तो होता ही है ना। तो जरूरत देखकर चलिए।
  1. शब्दों का बेमतलब इस्तेमाल मत कीजिए
  • अपने आप में गुम होकर अपनी ही पीछ थपथपाने से कोई फायदा नहीं है।
  • लोगों के नामों के साथ खेल-खिलवाड़ मत कीजिए। मान लीजिए मूसा नाम के एक आदमी ने जीवों पर एक किताब लिखी है, अब आप इस मूसा को उस मूसा से जोडक़र लिखते है- ”इस मूसा ने जीवों पर एक नई बाइबल लिखी”-ये अच्छा नहीं लगता, मत कीजिए।
  • बिजनेस जगत के शब्दों या नामों से खेल-खिलवाड़ तो और भी गंदा लगता है।
  • शब्दों से अगर सोंच समझकर खेला जाए तो फाएदा भी हो सकता है। शब्दो के बढिय़ा प्रयोग से अगर आप एक उत्सुकता जगा सकें तो दर्शकों की संख्या बढ़ेगी ही, घटेगी नहीं। पर हां-ये उत्सुकता जगाने का काम थोड़ा संभलकर कीजिए।
  • और मैं ये लिख दूं कि अगर आप उत्सुकता पैदा करके दर्शकों की संख्या बढ़ा सकते है और आपके पास ऐसा करने का सही कारण है तो ऊपर जितने सुझाव मैने दिए है, आप उनसे कभी-कभी समझौता कर सकते है।
  • पर हां… सही कारण होना जरूरी है। (किसी भी कारण को सही कारण साबित करने में न जुटे)

क्लिशे यानि नाटकीयता का एक उदाहरण

रेलवे की योजना…पटरी पर है…पटरी से उतर गई है…चौराहे पर आ खड़ी हुई है…लुढक़ रही है…चढ़ाई पर है…किसी छोटे इंजन की तरह धकधक कर रही है।

(पूरी योजना को रेलवे इंजन और पटरी बना डाला गया है इसमें)

उत्सुकता पैदा कर सके-तो असर ऐसा होगा

जरा इन वाक्यों को पढि़ए-

आपकी घड़ी वक्त के साथ-साथ कुछ और भी बताती है- और वो ये कि आप कौन हैं, आप क्या हैं!!

बिल्डर्स सीमा को लांघ गए है-

उसे अब महसूस हो रहा है कि शहर के विकास की भी एक सीमा है।

वगैरह…वगैरह!!!

  1. शब्दों के सहारे

शायद ये सबसे आसान तरीका है। स्टोरी से संबद्ध मेन शब्द सोचिए और उन शब्दों से क्या जुड़ सकता है ये सोचकर देखिए-बंधिए मत, खुलकर सोचिए-इससे आपको एंगल मिलेंगे-अब शब्दों के हल्के से खेल खिलवाड़ से वाक्य गढि़ए- ऐसे वाक्य जो मुद्दे को कई पहलुओ में दिखाते हो- ऐसा करने से मुद्दा भी आ जाएगा और वाक्य भी ऐसा बनेगा जिसका असर होगा।

  1. कल्पना के सहारे

ये बड़ा मजेदार तरीका है। स्टोरी पढि़ए और आंख बंद करके देखिए आपको क्या दिखता है-दिमाग हर चीज को तस्वीर में बदल देता है- बस उसी तस्वीर को शब्दो में ढाल दीजिए। जैसे कि-”इतिहास को दफ्न करने की कोशिश”-बड़ी इंट्रेस्टिंग लाइन है ये पर यही इसका मजा भी है। एक दूसरा उदाहरण देखिए-”इंटेसिव केयर से डेथ चैंबर तक का सफर”-डेथ चैंबर को एक सख्त मौत का एहसास कराने के लिए इस्तेमाल किया गया है। दिमाग की ये काल्पनिक उड़ान कई बार हेडलाइंस में एक नया अंदाज पैछा कर देती है।

भावनाओं का इस्तेमाल

हर स्टोरी में कोई न कोई इमोशन होता ही है। किसी फिल्म की स्टोरी की तरह न्यूज स्टोरी में भी प्यार, नफरत, गुस्सा, हताशा, प्रशंसा, खुशी शर्मसारी या तनाव सब कुछ होता है-पारसी नजर से इन इमोशंस को ढूंढकर उन्हे हाइलाइट कीजिए-दर्शक भावुक चीजों से फौरन जुड़ते हैं।

  1. कोटेशन का इस्तेमाल

अगर कोई कोटेशन या कोई कहावत ऐसी हो जो स्टोरी का सार कह सकें तो आखिर में उसे जोड़ दीजिए- पर जरूरत से ज्यादा भी न करें।

  1. बताने का स्टाइल

हेडलाइन में कुछ ऐसा बता दीजिए जो दर्शक बाद में स्टोरी में देखेंगे। इंतजार करेंगे। पर ये भी ध्यान रहे कि हेडलाइन को इतनी जबरदस्त सस्पेंस लाइन भी न बना दे कि दर्शक सोचता ही रह जाए कि ये क्या था!!

  1. सटीक बात को लिखिए

कई बार अगर आप हेडलाइन को नार्मल ढंग से लिखने के बजाय सटीक ढंग से लिखे तो असर गहरा होता है। बारीकी में जाइए और बारीकी से हेडलाइन लिखिए। मान लीजिए किसी शहीद नेता की मौत की खबर पर लिखना है तो ये न लिखे-”शहीद नेता के अंतिम संस्कार पर शोध का माहौल”-ये तो होगा ही, इसलिए ये लिखिए- ”शहीद नेता के अंतिम संस्कार में डेढ़ हजार लोगों की भीड़ उमड़ी” अब सोचकर देखिए-मौत की खबर तो पहले ही आ चुकी होगी, अंतिम संस्कार पर शोक का माहौल भी होगा-इसलिए कितने लोग थे ये बात ज्यादा पंची बन जाती है-इन बातों को समझिए।

  1. विजुअल्स से ज्यादा ताकतवर कुछ नहीं

टेलीविजन में विजुअल्स से ज्यादा ताकतवर कुछ नहीं। अगर कोई ऐसी चीज हो जहां विजुअल्स यानि तस्वीरे खुद बोल रही हो तो उनके माध्यम से बात कहें-भाषा को पीछे रखें।

उम्मीद करता हूँ कि आपको अगली बार खबर लिखने में आसानी होगी। और मै दावा करता हूँ कि अगर आपने इन्हे फॉलो कर लिया तो आप किसी भी तरहा की हेडलाइन्स और न्यूज़ लिख सकते है। 



फिल्मस् एण्ड मिडिया मेंटर

सचिन शिवा लिया

 मेरठ, उत्तर प्रदेश

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